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Trump-Putin Summit in Alaska: Global Geopolitical Impacts and an Uncertain Future

Trump-Putin Summit in Alaska

Trump-Putin Summit in Alaska: अलास्का में ट्रंप और पुतिन की ऐतिहासिक मुलाकात ने वैश्विक भू-राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने में असफल रही इस बैठक ने द्विपक्षीय संबंधों और भारत जैसे तटस्थ देशों के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कीं। जानें इसके वैश्विक परिणाम और भविष्य की संभावनाएँ।

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Trump-Putin Summit in Alaska: वैश्विक भू-राजनीति पर असर और अनिश्चित भविष्य

दुनिया की सियासत कभी-कभी ऐसे मोड़ लेती है कि पूरी दुनिया सांस थामकर देखने लगती है। ऐसा ही कुछ हुआ था अलास्का में, जहां अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई।

ये बैठक कोई साधारण बातचीत नहीं थी; ये एक ऐसी मैराथन मीटिंग थी जो लगभग तीन घंटे तक चली और पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। जगह थी अलास्का का एक मिलिट्री बेस, जहां दोनों नेता रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए सहमति बनाने की कोशिश कर रहे थे। Trump-Putin Summit

लेकिन अफसोस, दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे और कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। फिर भी, दोनों ने इसे “बहुत प्रोडक्टिव” बताया और कहा कि अगली बार मॉस्को में मिलेंगे।

ये मुलाकात सिर्फ अमेरिका और रूस के रिश्तों के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की भू-राजनीति पर असर डालने वाली थी। भारत जैसे तटस्थ देशों के लिए भी इसमें कई सबक और चुनौतियां छिपी हुई थीं।

अब जरा सोचिए, अलास्का जैसी ठंडी और दूर-दराज जगह को क्यों चुना गया इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए? ये कोई संयोग नहीं था। अलास्का का इतिहास ही ऐसा है जो रूस और अमेरिका को जोड़ता है। Trump-Putin Summit in Alaska:

Trump-Putin Summit in Alaska

कभी ये इलाका रूसी साम्राज्य का हिस्सा था। करीब 168 साल पहले, 1867 में, रूस ने इसे अमेरिका को बेच दिया था – वो भी सिर्फ 2 सेंट प्रति एकड़ के हिसाब से, कुल मिलाकर 72 लाख डॉलर में। आज के हिसाब से ये सौदा बेहद सस्ता लगता है, लेकिन उस वक्त रूस को पैसे की जरूरत थी और अमेरिका को विस्तार की।

पुतिन ने इस बैठक में अलास्का को “साझा विरासत” और “साझा इतिहास” का प्रतीक बताया। उन्होंने बेरिंग जलडमरूमध्य का जिक्र किया, जो रूस और अमेरिका के द्वीपों के बीच महज चार किलोमीटर की दूरी पर है।

मतलब, दोनों देश पड़ोसी हैं, भले ही समुद्र के बीच में हों। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अलास्का एक महत्वपूर्ण ‘एयर ब्रिज’ का केंद्र था, जहां से सैन्य विमान और उपकरण सोवियत संघ को भेजे जाते थे।

रूसी और अमेरिकी पायलटों ने मिलकर नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, जान जोखिम में डालकर। पुतिन ने उन पायलटों को समर्पित स्मारकों और सोवियत सैनिकों की कब्रों का जिक्र किया, जो अलास्का में हैं।

उन्होंने अमेरिकी सरकार और लोगों का शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने इनकी देखभाल की। ये ऐतिहासिक बैकग्राउंड ने बैठक को और भी खास बना दिया। ये सिर्फ दो नेताओं की बातचीत नहीं थी; ये दो देशों के पुराने बंधनों को याद करने का मौका था।

बैठक से पहले की तैयारियां और उम्मीदें भी कम दिलचस्प नहीं थीं। दोनों नेता अलग-अलग सोच के साथ आए थे। पुतिन ने कोई बड़ा दावा नहीं किया था। उन्होंने बस इतना कहा कि अमेरिकी प्रशासन युद्ध रोकने और संकट दूर करने के लिए गंभीर है।

उनका मानना था कि कोई भी समझौता ऐसा होना चाहिए जो सभी पक्षों – रूस, यूक्रेन, यूरोप – के हितों को ध्यान में रखे। ताकि लंबे समय तक शांति बनी रहे। पुतिन हमेशा से रूस की सुरक्षा को सबसे ऊपर रखते हैं, और ये बैठक उनके लिए एक मौका थी अपनी बात रखने का।Trump-Putin Summit in Alaska:

ट्रंप की तरफ से उम्मीदें आसमान छू रही थीं। वे बड़े-बड़े प्लान लेकर आए थे। बैठक के बाद वे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को फोन करने वाले थे, फिर यूरोपीय नेताओं से बात करनी थी।

दो दिन पहले ही ट्रंप ने जेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं के साथ ऑनलाइन मीटिंग्स की थीं, ताकि उनके डर और मांगों को समझ सकें।


Trump-Putin Summit in Alaska

यूरोपीय नेताओं ने ट्रंप के सामने पांच बड़ी मांगें रखीं: पहला, रूस को यूक्रेन के किसी इलाके पर कब्जे की मान्यता न दें; दूसरा, यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी दें; तीसरा, रूस और अमेरिका के बीच शांति समझौता हो; चौथा, युद्ध तुरंत रोकें; और पांचवां, रूस पर दबाव बनाएं। ट्रंप ने साफ कहा था कि अगर रूस नहीं माना तो “बहुत गंभीर नतीजे” होंगे। इतना ही नहीं, ट्रंप ने रूस पर दबाव बनाने के लिए भारत पर टैरिफ लगाने की घोषणा भी कर दी थी। मतलब, वे हर तरीके से रूस को झुकाने की कोशिश कर रहे थे।Trump-Putin Summit in Alaska:

ये मुलाकात पिछले चार सालों में पुतिन की किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ पहली फेस-टू-फेस मीटिंग थी। शीत युद्ध के बाद दोनों देशों के रिश्ते सबसे खराब दौर से गुजर रहे थे, और ये बैठक एक नई शुरुआत का मौका थी।

पहले से ही कई बार फोन पर बात हो चुकी थी, विशेष दूतों और विदेश मंत्रियों के बीच संपर्क बना हुआ था। लेकिन असली बात तो आमने-सामने होती है, जहां बॉडी लैंग्वेज और आंखों की बातें ज्यादा मायने रखती हैं।

अब बात करते हैं बैठक के स्वागत और प्रारूप की। पुतिन का अलास्का पहुंचना किसी फिल्मी सीन जैसा था।

ट्रंप खुद रेड कार्पेट पर खड़े थे, हाथ मिलाया, फिर दोनों एक ही कार में बैठे – वो कार थी “द बीस्ट”, अमेरिका के राष्ट्रपति की सुपर सिक्योर गाड़ी। ऊपर से अमेरिकी बी-2 बॉम्बर्स ने फ्लाई पास्ट किया, और एफ-22 रैप्टर्स जैसे स्टेल्थ फाइटर जेट्स का प्रदर्शन हुआ। ये सब पुतिन के सम्मान में था, लेकिन साथ ही अमेरिका की ताकत दिखाने का तरीका भी। जैसे कह रहे हों, “हम दोस्त बन सकते हैं, लेकिन हमारी ताकत मत भूलना।”

बैठक 3+3 फॉर्मेट में हुई, मतलब दोनों तरफ से तीन-तीन लोग। ट्रंप की टीम में विदेश मंत्री मार्को रूबियो और विशेष दूत स्टीव विटकोफ थे। पुतिन की तरफ से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ और सलाहकार यूरी उषाकोफ।

लेकिन असली बात तो दोनों नेताओं के बीच अकेले में हुई। कार में जाते वक्त या मीटिंग से पहले, अनुमान है कि उन्होंने एक-एक करके कई मुद्दे सुलझाए।Trump-Putin Summit in Alaska:

मुलाकात का मुख्य फोकस था यूक्रेन युद्ध। पुतिन ने साफ कहा कि रूस की सुरक्षा उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है। यूक्रेन को उन्होंने “भाईचारा वाला देश” बताया, लेकिन वहां हो रही तबाही को “त्रासदी” और “भयानक घाव” कहा।

उनका कहना था कि स्थायी समाधान के लिए युद्ध के मूल कारणों को खत्म करना होगा, रूस की चिंताओं को ध्यान में रखना होगा। ताकि यूरोप और दुनिया में न्यायपूर्ण सुरक्षा संतुलन बने। उन्होंने ट्रंप से सहमति जताई कि यूक्रेन की सुरक्षा भी जरूरी है।

ट्रंप ने कहा कि उन्होंने पूरी कोशिश की, बातचीत अच्छी रही। रूस और यूक्रेन के रिश्तों को बेहतर बनाने की इच्छा जताई। मीटिंग के बाद दोनों मीडिया के सामने आए, 12 मिनट तक अपनी-अपनी बात रखी, लेकिन सवालों का जवाब दिए बिना चले गए। ट्रंप ने कहा, “ये बहुत प्रोडक्टिव मीटिंग थी।

कई पॉइंट्स पर हम सहमत हुए, ज्यादातर पर। कुछ बड़े मुद्दों पर अभी नहीं पहुंचे, लेकिन प्रोग्रेस हुई है।” उन्होंने ये भी कहा कि “डील तब तक नहीं है जब तक हो नहीं जाती।” ट्रंप ने बताया कि वे नाटो और जेलेंस्की को फोन करेंगे, सबको अपडेट देंगे। पुतिन के साथ अपने रिश्तों को “शानदार” बताया, भले ही “रूस, रूस, रूस” वाले आरोपों ने मुश्किलें बढ़ाई हों। लेकिन पुतिन भी इसे धोखा मानते थे।Trump-Putin Summit in Alaska:

कुल मिलाकर, बैठक को दोनों ने “प्रोडक्टिव”, “रचनात्मक” और “उपयोगी” बताया। कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन युद्ध रोकने का कोई ठोस समझौता नहीं हुआ। इसे “बेनतीजा” कह सकते हैं। फिर भी, अगली मीटिंग मॉस्को में होगी, ये तय हो गया। उम्मीदें बरकरार रहीं।

अब सोचिए, इस बैठक के क्या दूरगामी असर हो सकते हैं? सबसे पहले यूक्रेन युद्ध पर। अगर कोई डील नहीं हुई तो युद्ध और तेज हो सकता है।

रूस हमले बढ़ा सकता है, अमेरिका और यूरोप नए सैंक्शंस लगा सकते हैं। पुतिन ने उम्मीद जताई कि कीव और यूरोपीय देश समझौतों को सकारात्मक देखेंगे, बाधा नहीं डालेंगे। लेकिन अगर नहीं हुआ तो क्या? दुनिया फिर दो ध्रुवों में बंट सकती है – एक तरफ रूस, चीन, ईरान; दूसरी तरफ अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, यूक्रेन। भू-राजनीतिक संतुलन बिगड़ सकता है।

अमेरिका-रूस रिश्तों पर भी असर पड़ेगा। पुतिन ने कहा कि रिश्ते शीत युद्ध के बाद सबसे नीचे हैं। अब टकराव से संवाद की ओर बढ़ना चाहिए।

नई अमेरिकी सरकार के आने के बाद व्यापार 20% बढ़ा है। डिजिटल टेक, स्पेस एक्सप्लोरेशन, आर्कटिक कोऑपरेशन में ढेर सारी संभावनाएं हैं। पुतिन का मानना है कि अगर ट्रंप पहले राष्ट्रपति होते तो 2022 में युद्ध नहीं होता। मतलब, वे ट्रंप को ज्यादा भरोसेमंद मानते हैं।

भारत पर क्या असर? भारत तटस्थ है, लेकिन इसमें फंस सकता है। अगर बैठक सफल होती तो अच्छा होता – अमेरिका टैरिफ कम करता, रूस से तेल खरीदने पर ऐतराज नहीं करता। रूस से सस्ता तेल और गैस मिलता रहता, भारत क्वाड में सक्रिय रहता। लेकिन असफल होने पर? अमेरिका दबाव बढ़ाएगा कि रूस से तेल-हथियार मत खरीदो, टैरिफ बढ़ाएगा।

तब भारत रूस से और करीब आएगा, ब्रिक्स में ज्यादा एक्टिव होगा। ट्रंप पहले कह चुके हैं कि ब्रिक्स अमेरिका के खिलाफ है। भारत के लिए ये दोधारी तलवार है – एक तरफ पुरानी दोस्ती रूस से, दूसरी तरफ अमेरिका की आर्थिक ताकत।

निष्कर्ष में कहें तो अलास्का की ये मुलाकात भले युद्ध रोकने में नाकाम रही, लेकिन ये एक नई शुरुआत थी। दोनों नेताओं ने संवाद की इच्छा दिखाई, मॉस्को में अगली मीटिंग का प्लान बनाया। इससे उम्मीदें जिंदा हैं। Trump-Putin Summit in Alaska:

ये बैठक दिखाती है कि वैश्विक शांति के लिए टॉप लीडर्स का डायरेक्ट डायलॉग कितना जरूरी है। दुनिया को इंतजार है उस दिन का जब ये युद्ध खत्म हो, शांति आए। लेकिन इसके लिए और मीटिंग्स, डिप्लोमेसी चाहिए। अनिश्चित भविष्य है, लेकिन उम्मीदें बरकरार।

(अब इस लेख को और विस्तार से समझते हैं। मूल लेख में कई बिंदु हैं, लेकिन इंसानी भाषा में लिखने का मतलब है कि इसे ज्यादा बातचीत जैसा बनाएं, जैसे कोई दोस्त बता रहा हो। तो चलिए, और गहराई में जाते हैं।)

सबसे पहले अलास्का के चुनाव पर और बात करें। अलास्का क्यों? क्योंकि ये जगह रूस और अमेरिका के बीच का ब्रिज है। रूस ने इसे “अलास्का पेनिनसुला” के रूप में देखा था, लेकिन बेच दिया।

आज पुतिन कभी-कभी मजाक में कहते हैं कि अलास्का वापस ले लें, लेकिन वो मजाक है। बैठक में पुतिन ने इतिहास का इस्तेमाल करके माहौल बनाया। Trump-Putin Summit in Alaska:

बेरिंग स्ट्रेट की दूरी सिर्फ 4 किमी – इतनी करीब कि ठंड में बर्फ पर चलकर पार किया जा सकता है। द्वितीय विश्व युद्ध की कहानियां – अमेरिकी लेंड-लीज प्रोग्राम के तहत अलास्का से सोवियत संघ को मदद। हजारों विमान उड़ाए गए, कई पायलट मारे गए। अलास्का में स्मारक हैं, जहां रूसी सैनिक दफन हैं। पुतिन का शुक्रिया अदा करना एक स्मार्ट मूव था – पुराने बंधनों को याद दिलाकर ट्रस्ट बनाना।Trump-Putin Summit in Alaska:

बैठक से पहले की तैयारियां। पुतिन शांत थे, कोई बड़ा वादा नहीं। वे जानते हैं कि अमेरिका में ट्रंप की वापसी ने चीजें बदली हैं। ट्रंप की टीम ने यूरोप और यूक्रेन से इनपुट लिया। यूरोपीय मांगें – कोई कन्सेशन न दें रूस को। Trump-Putin Summit in Alaska:

ट्रंप का टैरिफ वाला कदम भारत पर – ये दिखाता है कि ट्रंप कितने आक्रामक हैं। भारत रूस से तेल खरीदता है, हथियार लेता है। ट्रंप को लगता है कि ये रूस को सपोर्ट है। लेकिन भारत का स्टैंड तटस्थ है – युद्ध रोकने का, लेकिन बिना पक्ष लिए।

स्वागत का सीन – रेड कार्पेट, द बीस्ट कार, फाइटर जेट्स। ये अमेरिकी स्टाइल है, पावर शो। पुतिन को इंप्रेस करने की कोशिश, या चेतावनी? 3+3 फॉर्मेट – छोटी टीम, मतलब सीक्रेट टॉक्स। रूबियो, लावरोफ जैसे एक्सपर्ट्स – ये लोग सालों से डिप्लोमेसी में हैं।Trump-Putin Summit in Alaska:

बैठक की डिटेल्स। यूक्रेन पर फोकस। पुतिन की चिंताएं – नाटो का विस्तार, रूस की सीमाओं पर खतरा। ट्रंप की कोशिश – मध्यस्थ बनना। मीडिया के सामने स्टेटमेंट – कोई सवाल न लेना, मतलब संवेदनशील मुद्दे। ट्रंप का “प्रोडक्टिव” कहना, लेकिन “डील नहीं हुई” – क्लासिक ट्रंप स्टाइल, डीलमेकर की भाषा।Trump-Putin Summit in Alaska:

परिणाम। युद्ध पर असर – अगर नहीं रुका तो और मौतें, और आर्थिक नुकसान। यूक्रेन पहले ही तबाह है, रूस पर सैंक्शंस। भू-राजनीति – दो ब्लॉक्स। चीन रूस के साथ, अमेरिका नाटो के। भारत बीच में – क्वाड vs ब्रिक्स। ट्रंप ब्रिक्स से नाराज, क्योंकि वो डॉलर को चैलेंज कर रहा है। भारत के लिए चैलेंज – आर्थिक विकास के लिए दोनों पक्षों से बैलेंस।Trump-Putin Summit in Alaska:

अमेरिका-रूस रिश्ते – व्यापार बढ़ा, संभावनाएं। स्पेस में कोऑपरेशन – आईएसएस पर साथ काम करते हैं। आर्कटिक – क्लाइमेट चेंज से नए रूट्स। पुतिन का ट्रंप पर भरोसा – क्योंकि ट्रंप नाटो पर सवाल उठाते हैं।Trump-Putin Summit in Alaska:

भारत पर विस्तार से। सफल मीटिंग से फायदा – टैरिफ कम, रूस से सस्ता तेल (भारत 40% इंपोर्ट रूस से)। क्वाड मजबूत, चीन पर चेक। असफल से – दबाव, CAATSA सैंक्शंस S-400 पर। लेकिन भारत रूस से दूर नहीं जाएगा – पुरानी दोस्ती, UN में सपोर्ट। ब्रिक्स में ज्यादा रोल – नई करेंसी, ट्रेड। ट्रंप को पसंद नहीं, लेकिन भारत इंडिपेंडेंट है।

निष्कर्ष – ये मीटिंग उम्मीद की किरण। संवाद जारी, मॉस्को में अगली। वैश्विक शांति के लिए ऐसे डायलॉग जरूरी। अनिश्चितता है, लेकिन लीडर्स अगर चाहें तो बदलाव,दुनिया देख रही है।Trump-Putin Summit in Alaska:

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