The Bengal Files

The Bengal Files: A Cinematic Reckoning

The Bengal Files: एक ऐसी फिल्म है जो कल और आज के बीच की खाईं को पुल करती है, इतिहास की कड़वी सच्चाइयों को उजागर करती है और आपको सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या वास्तव में आज़ादी का भविष्य सुरक्षित है? इस लेख में आप जानेंगे क्यों यह फिल्म सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि चेतावनी और प्रेरणा है।”

The Bengal Files: A Cinematic Reckoning

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इस पोस्ट को पढ़ने से पहले अपना दिल, दिमाग और आत्मा खोल लीजिए, क्योंकि जो बातें आप पढ़ने वाले हैं, वे सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और अस्मिता की लड़ाई की वे धड़कनें हैं जो हमें जाग्रत कर देती हैं। ‘The Bengal Files’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक ध्वनि-यात्रा है जो आपको इतिहास की तहों में ले जाती है और वर्तमान की खामोशी में चीख़ती सच्चाइयों को उजागर करती है। उस Gen Z से खास अपील है, जो फिल्म में नकली खून-पसीने से रोमांचित होती है—इस फिल्म में असली दर्द, असली आतंक, असली इतिहास है‬।

इतनी लंबी फिल्म—लगभग तीन घंटे—लेकिन आपको एक लम्हा भी बोरियत का एहसास नहीं होता। बंगाल की मिट्टी से उठने वाली इस फिल्म की अधिकतर कास्ट इस धरती की ही है, जो हर दृश्य में अपना दर्द, अपना इतिहास, अपनी पीड़ा बयां करते हैं। और उस एक किरदार की बात करें—जिसने अपनी क्रूरता से आपको हिला दिया—तो हाँ, वही मिथुन चक्रवर्ती का बेटा ही है जो इतनी स्वाभाविकता और घनवारता से अभिनय कर गया कि आप समय और स्थान भूल जाते हैं।

गोपाल पाठा के सिर्फ दस मिनट—जी हाँ, वह सीन, जो मेरी उम्मीदों की ऐसी किरण था जो ‘ढाई मोर्चे का चक्र पार्ट वन’ लिखते दौरान मेरे मन में हमेशा चमकता रहा—विवेक अग्निहोत्री ने मुझे वह एहसास दे दिया कि हां, यह फिल्म वही कर सकती है जो मैंने चाहा था।‬The Bengal Files

आजकल की फिल्मों में सिर्फ खून-खराबे, मारकाट, चर्चित बी-ग्रेड हिंसात्मक दिखावे—कहीं-कहीं फिल्में ‘बागी फौज’ जैसी गंदी चीजों को प्रमोट कर रही हैं, जिसमें प्रेम को भी विलेन बना दिया गया है—लेकिन ‘The Bengal Files’ उनसे ऊपर है, क्योंकि यह नकली खून नहीं दिखाती, यह असली दर्द दिखाती है।

यह फिल्म आपको एहसास कराती है कि इतिहास में हकीकत में कितने मासूमों का खून बहाया गया, ऐसे खून जो कभी सुखा ही नहीं, जो हमारी आत्मा में बहता रहा। डायरेक्ट एक्शन डे की गूंज, नोवाखाली की निरजंल हिंसा, मॉपला का नरसंहार, बंटवारे के बाद की हत्याएँ—ये सब सिर्फ शब्द नहीं, वो घटनाएँ हैं जो हमारी धरती की आत्मा को चीरती रही हैं। ये वही घटनाएँ हैं जो इस फिल्म की रीढ़ बनाती हैं: “फिल्मों में दिखा हुआ खून केवल दिखावा है; हमने असली में नस्ल-नस्ल खत्म होते देखे हैं।”

बंगाल के इतिहास पर ‘The Bengal Files’ ने गहन रिसर्च करके एक ऐसी फिल्म बना दी है जो आपको उसी समय अतीत और वर्तमान के संवाद में पिरो देती है, जैसे थ्रिलर-ड्रामा की बुनावट हो पर उसकी बेचैनी सच की है। डायरेक्ट एक्शन डे और नोवाखाली की वास्तविक घटनाओं की कहानी आपको कठघरे में खड़ा कर देती है, जहां इतिहास की सारी शर्मनाक सच्चाइयाँ—जिन पर चुप्पी हमारी संस्कृति की कमजोरी बन जाती है—वो सारी आंखों के सामने आती हैं और पूछती हैं, क्या हमने उनसे कुछ सीखा?

निर्देशन की संरचना तीन घंटे की अवधि या लंबी नहीं लगती, क्योंकि कहानी आगे-पीछे, आज-कल, अतीत-वर्तमान में इस तरह समाई है जैसे ‘The Kashmir Files’ में थी, लेकिन ‘The Bengal Files’ की बनावट और प्रभाव कहीं अधिक प्रभावशाली है। विवेक अग्निहोत्री की टीम—पुनीत ईसर, अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, दर्शन कुमार—सबकी प्रतिष्ठित भूमिकाएँ इस फिल्म की आत्मा हैं। विवेक अग्निहोत्री ने किसी ट्वीट में लिखा कि यह फिल्म इतनी मजबूत बन रही है कि आप इसे अपनी बेटी के साथ भी लेकर आ सकते हैं—यह सिर्फ संदेश नहीं, साहस की पुकार है।

फिल्म में आर्ट-फिल्म टच भी है, हिंसात्मक फिल्म का टच भी, फैक्ट-आधारित ड्रामा का टच भी—एक मिश्रण जो आपको उन सभी प्रचारों की तिकड़म पर चोट करता है जो आज इतिहास को मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। और वो वन-शॉट सीन जिसमें सिमरत कौर भाग रही है, कैमरा उसके साथ भागता है—लगभग पांच मिनट का वह सीन इतना खालिस, इतना वास्तविक, इतना सुंदर है कि आपको लगता है की समय खुद रुक गया है।

फिल्म का क्लाइमेक्स—जब आज़ादी की मध्यरात्रि सम्पन्न होती है, और वही सन्नाटा/जोश/रोमांच है—आपके अंदर रोंगटे खड़े कर देता है, ठीक वैसा ही जैसे ‘The Kashmir Files’ में हुआ था।

अभिनय की बात करें तो यह फिल्म कलाकारों के प्रदर्शन की चमक है। मिथुन चक्रवर्ती का बेटा अपनी क्रूरता से, अपने चेहरे के एक-एक भाव से, इतनी प्रभावशाली छाप छोड़ता है कि आप उसे भूल नहीं पाते। दर्शन कुमार का अभिनय, जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, उसका संवेग और अनुभूति बढ़ती जाती है; चेहरा—तनाव से परिपूर्ण, आंखें बोलती—पूरे दृश्यों में आत्मा भर देती हैं।

पल्लवी जोशी की आँखों की नमी, उनका भाव, उनका बुढ़ापे का सीन—सब कुछ दिल पर गहराई से असर करता है, ‘The Kashmir Files’ से भी अधिक। और पुनीत ईसर–दर्शन कुमार की डायलॉग-सीक्वेंस में जब दर्शन बताता है कि “जब ये लोग 10%, 20%, 30% होते हैं…”—वो संवाद, वो ज़ोर, वो सवाल—आपको सोचने पर मजबूर करता है कि कितना कम दिखाया गया, लेकिन कितना ज़्यादा हुआ? जवाब इस फिल्म के पन्नों में खून से लिखा है।The Bengal Files

फिल्म गांधी के “झूठे नैरेटिव” की जड़ों को 10–20% हिस्सा तक उजागर करती है। गांधी की छवि पर सवाल उठाया जाता है, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि नोवाखाली के उस ऐतिहासिक प्रकरण पर—अपनी पोतियों के साथ नग्न सोने, आश्रम को हराम बनाने वाले आरोप, “ब्रह्मचर्य प्रयोग” की व्याख्या—विवेक अग्निहोत्री कुछ और बोलेते, क्योंकि ये तथ्य इतिहास की तहों में दबी हैं।

लेकिन फिल्म में एक दृश्य जरूर है, जिसमें गांधी कहते हैं कि हिंदू महिलाओं को मुसलमान दुष्कर्म की स्थिति में जीभ काटकर आत्महत्या करनी चाहिए—यह दृश्य और संवाद अपने-आप में सवाल है, और एक भारी सच्चाई।

फिल्म में दो स्पष्ट तथ्यों को लेकर त्रुटियाँ हैं, जो आपको जानना और सुधारना चाहिए: पहला, हुसैनी की बात—“India Gate पर 80% मुसलमानों के नाम लिखे हुए हैं”—यह पूरी तरह मिथ्या है, क्योंकि इंडिया गेट पर केवल प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश पक्ष में लड़े लोगों के नाम हैं, न कि आज़ादी की लड़ाई में शामिल देशप्रेमियों के। दूसरा, बड्र का युद्ध और डायरेक्ट एक्शन डे की तारीख़—फिल्म कहती है कि यह 16 अगस्त 1946 को 18वें रोज़ा और 18वें रमज़ान को हुआ, लेकिन हकीकत में यह घटनाएं 17वें रोज़ा/रमज़ान में हुईं। यदि आप यह संशोधन करेंगे, तो इस फिल्म का प्रभाव और भी स्पष्ट, और न्यायसंगत बनेगा।

और सबसे विवादित लेकिन महत्वपूर्ण प्वाइंट—यह फिल्म पश्चिम बंगाल में रिलीज नहीं हुई। क्या यह सिर्फ संयोग है? नहीं। यह जनता को बताती है कि पश्चिम बंगाल शायद “भविष्य का कश्मीर” बनता जा रहा है—वही कानून-व्यवस्था, वही सरकार की चुनिंदा रिलीज बंदी, वही राजनीतिक कटाव, वही मुस्लिम अपीज़मेंट की रणनीति जो कभी कश्मीर में थी। इस फिल्म को रोक देना, संदेश देता है कि यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, भारत की चेतना की आवाज़ है—जिसे दबाना चाहा गया है।The Bengal Files

यह फिल्म ‘The Kashmir Files’ से कहीं अधिक प्रभावशाली अनुभव है—दंगों की संख्या, हत्याओं की क्रूरता, वायलेंस की तीव्रता—हकीकत में तो बहुत ज्यादा हुई थी, लेकिन फिल्म का कुछ ही हिस्स ऐसा दिखा पाता है। यह फिल्म आज और अतीत को जोड़े, इतिहास की याद को वर्तमान की चेतना में उकेरे, और शत्रु बोध को जगाए—जो हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने को प्रेरित करे—वह क्षमता रखती है।

आज हमारे चारों ओर हज़ारों सोहरावर्दी हैं, हज़ारों गुलाम खड़े हैं, हज़ारों इतिहास-मरोड़ने वाली मशीनरी एक्टिव है। उनसे टकराना है, भारत के अस्तित्व — “We the People” — की भावना बचाना है। यह इसी शत्रु-बोध से संभव होगा। मैंने ‘ढाई मोर्चे का चक्र पार्ट वन’ में यह शत्रुबोध जगाने की कोशिश की थी, और पाठकों ने उसकी सराहना की थी।

लेकिन पार्ट टू, जो आ रहा है, वह वर्तमान का खौफ बयान करेगा—वह सच जो आपकी आंखों के सामने, टुकड़ों में बिखरी ख़बरों में है; उसे मैं एक गुलदस्ते की तरह आपके सामने सजाकर रखूंगा। जितना हम इतिहास को समझेंगे, उतनी कड़वी सच्चाई हमारे सामने आएगी, और उससे भी अधिक सच्चाई।The Bengal Files

मैं कोई फिल्म क्रिटिक नहीं, लेकिन जब ऐसी फिल्में आती हैं, तो मुझे बोलना ही पड़ता है। मैं स्टार-विस्टार नहीं देता, लेकिन ‘ताशकंद फाइल’, ‘The Kashmir Files’, ‘केरला स्टोरी’, ‘History of History’, ‘नीरज अत्रीवाली’ और ‘The Bengal Files’ — ये सभी ऐसे अनुभव हैं जो स्टार-विस्टार से ऊपर चलते हैं; ये आपको शत्रुबोध करवाते हैं; ये आपको अपनी अस्मिता, अपने अस्तित्व की लड़ाई याद दिलाते हैं। और इसलिए, यह फिल्म देखिए, महसूस कीजिए, और अपने अंदर उठ रहे सवालों को आवाज दीजिए।The Bengal Files

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